इस ब्लॉग को प्रारम्भ करने का उद्देश्य: मंच की दशा और दिशा पर चर्चा करना। यह संवाद यात्रा AIMYM द्वारा अधिकृत नहीं है। संपर्क-सूत्र manchkibaat@gmail.com::"

नए संदेश

Tuesday

ये रेडियो मायूम है...!!!

साथियों गत 8 जनवरी 2009 अपने अनुभवों को बांटने के उद्धेस्य से एक प्रश्न मंच गठित करने का प्रयास किया गया था. आपका कोटिशः धन्यवाद की आपने उसपर भरपूर स्नेह दिया है और अपने बहुमूल्य विचारों से ब्लॉग के सदस्यों को अवगत करवाया. यहाँ आपके सभी विचारों को एक साथ करने का प्रयास कर रहा हूँ।
पूछे गए प्रश्न थे :-

प्रश्न 1 - हम क्या करें की समाज के बेहतर लोग स्वतः मंच की सदस्यता लेने की ओर आकर्षित हों ?

(8 जनवरी 2009 को सुमित चमडिया द्वारा)
इस प्रश्न के उत्तर में हमें अब तक कई जवाब प्राप्त हुए हैं; जिनका सार-संक्षेप है;
(उत्तरदाता - सर्वश्री ओमप्रकाश अगरवाला, अमित गोयल, अनिल वर्मा, प्रमोद कु.जैन, निश्चल सिंघल एवं शम्भू चौधरी)

1. शाखा स्तर पर ऐसे लोगो की सूचि बना कर उनसे संपर्क करना अवाम मंच के अखिल भारतीय स्वरुप के बारे में उन्हें अवगत करना.
2. कार्यक्रमों में उन्हें आमंत्रित करना.
3. कार्यक्रमों और सभाओं में समयानुवार्तिता का ध्यान रखा जाए एवं लंबे भाषणों से बचा जाए.
4. मंच के नए और कर्मठ कार्यकर्ताओं को सब के सामने पुरस्कृत किया जाए, ताकि उनमे नए उत्साह का संचार हो. विभिन्न कार्यक्रमों में अपने शाखा के पदाधिकारियों, कार्यकर्ताओं एवं कार्यक्रम संयोजकों को जरुर पुरस्कृत करें.
5. मंच नेतृत्व कार्यक्रम की विफलता पर किसी पर दोषारोपण न कर स्वयं नैतिक जिम्मेवारी ले और कार्यकर्ताओं में उत्साह वर्धन करने का प्रयास कर उन्हें ये विश्वास दिलाये की अगला कार्यक्रम सफल होगा.
6. अतिथियों को मंच पर लाना, उनका सम्मान करना, कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं को अधिक से अधिक शामिल करना चाहिए.
7. मंच दर्शन का समाज में विस्तार करना होगा, हम अभी भी केन्द्रित पैठ बना पाए हैं और जब तक इसका विकेन्द्रीकरण नही होगा तब लोग स्वतः ही मंच कि सदस्यता लेने के लिए आकर्षित नही हो सकते हैं .
8. मंच के सभी सदस्य एक श्रेणी और एक ही नजरों से देखें जाने चाहिये.
(प्रश्न-1 हेतु आपके विचार \ अनुभव इस कृपया यहाँ पोस्ट करें)

प्रश्न 2. मंच / शाखाओ में राष्ट्रीय और प्रांतीय पदाधिकारियों की क्या भूमिका होनी चाहिए ? (विशेष कर उनकी गृह शाखा में)।

(10 जनवरी 2009 को आशीष बोंदिया द्वारा)
इस प्रश्न के उत्तर में हमें अब तक जो जवाब प्राप्त हुए हैं; उनका सार-संक्षेप है;
(उत्तरदाता - श्री अनिल वर्मा)
1. एक अभिभावक के रूप में गतिविधियों को मॉनिटर करते हुए उचित मार्गदर्शन प्रदान करना, एक भाई के रूप में कंधे से कन्धा मिला कर मंच कार्यों में साथ देना, और एक बेटे के रूप में शाखा के वरिष्ठ (वर्तमान शाखा नेतृत्व) एवं अनुभवी (शाखा के पुराने नेतृत्व/ कार्यकर्ताओं) को यथोचित आदर एवं मान-सम्मान प्रदान करना.
2. एक नेतृत्वकर्ता की तरह शाखाओं एवं पदाधिकारियों में उत्साह का संचार कर मंच के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए.

(प्रश्न-2 हेतु आपके विचार \ अनुभव इस कृपया यहाँ पोस्ट करें)


-सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
9431238161

No comments:

Post a Comment

हम आपकी टिप्पणियों का स्वागत करते है.