"प्रगति, दिशा और लक्ष्य" यह मूल मंत्र तय किया गया है, २६ दिसम्बर २००८ से आरम्भ होने वाले इस राष्ट्रीय अधिवेशन का। ब्लॉग के शुरुवात में मैंने यह लिखने की धृष्टता की थी - "कारवां २००८ में यह थीम सटीक और सामायिक है। पर सही थीम तय कर देने भर से अशिवेशन की सार्थकता तय नहीं हो जाती है। इसके लिए जरूरी है की नेतृत्व इस थीम पर कुछ कार्य करें। आशा करता हूँ की नेतृत्व जल्द ही अधिवेसन से अपनी अपेक्षाओं का खुलासा करेगा और थीम पर अपनी सोच भी सदस्यों के सामने रखेगा।"
मगर अफ़सोस यह है कि नेतृत्व की ओर से ऐसा कोई संवाद सदस्यों से नही किया गया है। संभवतः मैं उनकी ऊंची सोच को समझ नही पा रहा हूँ। शायद ऐसा सोचा जा रहा हो कि "प्रगति, दिशा और लक्ष्य" पर सही चिंतन dias ही कर पायेगा, या कि ऐसे किसी चिंतन में साधारण सदस्यों की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। प्रस्तावित कार्यक्रम सूचि का अवलोकन करने के बाद कम से कम मुझ जैसे साधारण सदस्य को यही लगा कि "प्रगति, दिशा और लक्ष्य" सिर्फ़ एक स्लोगान भर है और इसे थीम मान कर अपेक्षाएं नही पाली जानी चाहिए।
लेकिन मुझे राष्ट्रीय नेतृत्व पर पुरी आस्था है, और मैं अब भी आश्वस्त हूँ कि यह थीम सिर्फ़ शब्द मात्र नही रहेंगे, बल्कि वाकई में इस अधिवेशन में इस थीम पर चर्चा होगी। जहाँ अब तक की प्रगति पर करतल ध्वनि से मंच सेनानियों का अभिनन्दन होगा, वहीँ मंच की दिशा पर सामूहिक चिंतन होगा और लक्ष्य का पुनः निर्धारण किया जाएगा। आमीन। मैं जानता हूँ और मानता हूँ कि ब्लॉग में ग्यान बघारना बहुत आसान है, और कार्य संपादित करना बहुत मुश्किल। पर मैं यह भी मानता हूँ कि अपेक्षाएं समर्थ लोगो से ही रखी जाती है।
आशा की जा रही है कि कम से कम २५०० प्रतिनिधि इस महाकुम्भ में भाग लेंगें। उन सभी प्रतिनिधि भाई बहनों का हार्दिक अभिनन्दन। अभिनन्दन रांची शाखा के कर्मठ साथियों का जो दिन रात इस महाकुम्भ को सफल बनने में तन, मन और धन से जुटे हुवे हैं। अभिनन्दन मंच नेतृत्व का, जो इस अधिवेशन को यादगार बनने हेतु दिन रात जुटे हुवे है।
अजातशत्रु
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