अगर हम अपनी वर्तमान प्रतिभा को ठीक ढंग से देखें और समझें तो निश्चय ही हम शक्ति का अनुभव करेंगे। बहुत सारी गलतफहमियां हमारे समाज के बारे में दूर हो चुकी है और जो आज भी प्रचलित हैं, वे भी हमारी नहीं प्रतिभा को दिखाने समझाने से दूर हो जायेंगी। व्यवसायेत्तर क्षेत्रों में भी, जैसे शिक्षण-प्रशिक्षण, चिन्तन लेखन, कला और खेल कूद सरकारी नौकरियों और प्रतिरक्षा आदि के क्षेत्रों में अपने अवदान की विशेषता को हम लोगों के सामने रखें और पहुंचायें। हमारी सम्मान भावना केवल धन के प्रति ही न रहें, बल्कि अन्याय शक्तियों के विकास और संवर्धन के प्रति भी रहे। हम निरन्तर संगोष्ठियों का आयोजन कर रहे हैं जिनमें पारम्परिक विचार- विनिमय के द्वारा नये विचारों की जागृति हो, हमारी शक्ति का हमें सच्चा अहसास हो। इन संगोष्ठियों में हमने यह अनुभव किया है कि समाज में आज न विचार की कमी है और न शक्ति की। अगर कमी है तो इन दोनों के योग के कर्मशील बनने की।
इसी सन्दर्भ में हमारे सामने समस्या आती है कार्यकर्ताओं के निर्माण और प्रोत्साहन की। आज चाहे राजनीति के क्षेत्र में हो, चाहे सामाजिक क्षेत्र में कार्यकर्ताओं का अभाव दिखता है। जिस समाज के पास सार्वजनिक सेवा करने वाले कार्यकर्ता नहीं होते, वह उतना अग्रसर नहीं होता, जितना हो सकता है। सम्मेलन न केवल कार्यकर्ताओं का सम्मान करता है और उनको प्रोत्साहित करता है, बल्कि उनके शिक्षण प्रशिक्षण के लिये प्रयत्नशील रहता है। आज इस बात की बड़ी आवश्यकता है कि पुराने कार्यकर्ता नये कार्यकर्ताओं का निर्माण करें और उनको समाज में अग्रसर करें। आज कार्यकर्ताओं में जो नवचिन्तन होना चाहिये और सार्वजनिक कार्यों के तौर तरीकों का जो ज्ञान होना चाहिये, विश्लेषण करने की शक्ति होनी चाहिये, उसके लिये प्रेरणा और प्रोत्साहन की आवश्यकता है। जो समाज अपने कार्यकर्ताओं का आदर करना नहीं जानता, उसको प्रोत्साहित नहीं करता, सहायता और सहयोग नहीं देता, वह आज नहीं तो कल और कल नहीं तो परसों अपने को बहुत ही चिन्तनीय स्थिति में पायेगा।
[नोट: यह लेख इनके 1963 में लिखे लेख का एक अंश है]
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वर्तमान प्रतिभाओं को ठीक ढंग से देखें
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