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शाखा सदस्य - संस्था की पूँजी - अरूण बजाज

अरूण बजाज, भूतपूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष


सदस्यता विकास संगठन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। संगठन को जीवन्त बनये रखने के लिए आवश्यक है उत्साही नवयुवकों को निरन्तर मंच से जोड़ते रहना चाहिये, क्योंकि नये जोश के बिना मंच की गति धीमी हो जाने का भय सदैव बना रहता है, जबकि सदस्यता विकास कार्यक्रम के द्वारा संगठन में सर्वदा नयापन, नयी उमंग के साथ देखने को मिलता रहता है।
सदस्यता विकास समिति का यह कर्त्तव्य है कि वह समय-समय पर ऐसे कर्मठ युवकों की सूची तैयार करते रहें जो कि मंच के संभावी सदस्य हो सकते है। स्मरण रहे कि ऐसी सूची तैयार करने के समय प्रस्तावित युवाओं की गुणवत्ता एवं ग्रहणता जैसे व्यक्तिगत जीवन शैली, रुचि, सामाजिक सेवा के प्रति रुझान, कर्तव्य निष्ठता, दायित्वबोध, जनप्रियता आदि पर विशेष ध्यान देना चाहिए। साथ ही साथ यह भी ध्यान रखना चाहिये कि इस प्रकार तैयार की गई सूची में समाज के सभी वर्गों का उचित प्रतिनिधित्व हो जैसे अग्रवाल, माहेश्वरी, ओसवाल, क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, अनुसूचित आदि। सभी पेशे के लोग जैसे डॉक्टर, वकील, छात्र, खिलाड़ी आदि विभिन्न आयु वर्ग के युवाओं का प्रतिनिधित्व भी आवश्यक है। यहाँ एक बात का उल्लेख करना विशेष रुप से आवश्यक है कि युवा मंच में अधिक से अधिक युवतियों का समावेश हो। यह चेष्टा निरन्तर होनी चाहिये क्योंकि बदलते हुए परिवेश में व्यक्ति विकास एवं समाज सुधार जैसे कार्यक्रमों को संपादित करने के लिये न सिर्फ उनके सहयोग की आवश्यकता है बल्कि उनकी सक्रिय भागीदारी भी अनिवार्य है।
संख्या में सदस्यता विकास जितना कठिन कार्य नहीं है, उससे ज्यादा कठिन है संस्था से सदस्यों को जोड़े रखना। साथ ही संस्था में जड़ता न आए एवं नई चेतना स्फूर्ति, नव संचार व नवीन सदस्यों को प्रेरित करने के लिए निम्नलिखित तथ्यों पर गौर करना आवश्यक है:-


  • 1. अधिकांश शाखाओं में यह देखा जाता है कि संस्थापक एवं पुराने सदस्य, नवीन सदस्यों को जिम्मेदारी देने में कतरातें हैं एवं साथ ही उनके प्रति अविश्वास प्रदर्शित करना व जिम्मेदारियों से उन्हें दूर रखने के कारण उनकी शक्ति का सही उपयोग नहीं हो पाता साथ ही उनकी ऊर्जा से संस्था वंचित रह जाती है। जिससे संस्था कुछ सदस्यों का समूह मात्र बन कर रह जाती है। एतदर्थ आवश्यकता इस बात की है कि संस्था में नव संचार के लिए नवीन सदस्यों को जिम्मेदारियाँ सौंपी जाय। जिससे न सिर्फ उनके आत्म विश्वास में वृद्धि होगी तथा वे तन-मन-धन से संस्था एवं समाज के लिए कार्य करने के लिए उत्साहित होंगे।
  • 2. साधारणतया ऐसा देखा जाता है कि संस्था में वरिष्ठ सदस्यों के विचारों को अधिक महत्व दिया जाता है, जबकि नये सदस्य तुलनात्मक रुप से रचनात्मक एवं ठोस विचार भी रखें तो उसे अनसुना कर दिया जाता है, इससे सदस्य निरुत्साहित हो जाते हैं एवं उनका मनोबल गिरता है। आवश्यकता इस बात कि है कि सदस्यों के विचारों को सही महत्व मिले। इससे प्रतिभा के धनी सदस्यों से शाखा वंचित नहीं होगी और शाखा के विकास में कोई बाधक नहीं बन सकेगा।
  • 3.समय-समय पर शाखाएँ कई सार्वजनिक कार्यक्रम अयोजित करती है, उन कार्यक्रमों मे साधरणतया ऐसा देखा जाता है कि सदस्यों को स्वयंसेवक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है, किन्तु जहाँ उनको प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है या उनके कार्यों को मान्यता देने का प्रश्न आता है, सारा श्रेय पदाधिकारीगण स्वयं ले लेते हैं जो संस्था के लिए घातक है। एतदर्थ सदस्यों को संस्था से जोड़कर रखने के लिये यह आवश्यक है कि सदस्यों को उचित मान्यता मिले एवं उन्हें समय-समय पर प्रोत्साहित किया जाय। साथ ही उपयुक्त कार्यक्रमों में अतिथियों एवं पदाधिकारीगणों को प्रतीक चिन्ह आदि भेंट करने में भी सदस्यों को अवश्य मौका दिया जाना चाहिये। उपयुक्त तथ्यों पर शाखाध्यक्ष, शाखामंत्री अन्य पदाधिकारियों एवं समिति संयोजकों को हमेशा अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए इस बात के लिय हमेशा सचेष्ट रहना चाहिये कि जहाँ कहीं भी मौका मिले, सदस्यों को मान्यता दें एवं उनकी प्रशंसा में कंजूसी न करें।

इसके अलाव पदाधिकारियों का उन तथ्यों पर गौर करना आवश्यक है, जिसके कारण सदस्य संस्था से टूटते हैं:

  • 1. सदस्यों को बैठक में भाग लेने के लिये उत्साहित न किया जाना।
  • 2.पदाधिकारियों का बैठकों एवं कार्यक्रमों में अपने आप में ही तल्लीन रहने एवं सदस्यों की तरफ ध्यान न देने के कारण सदस्यों में हीन भावना का होना।
  • 3. संस्था के संस्थापक सदस्यों एवं पुराने सदस्यों का अपने समुह में खोये रहना एवं नवीन सदस्यों की तरफ ध्यान न देने के कारण वे अपने आप को तिरस्कृत महसूस करतें हैं एवं संस्था में उनकी रुचि कम हो जाती है।
  • 4.सदस्यों को कार्यक्रमों का अंग न मानकर उनको केवल आदेश देने के कारण वे संस्था में अपने आपको बौना महसूस करते हैं। इस कारण संस्थ में रुचि कम हो जाती है।
  • 5. कार्यक्रमों एवं बैठक की सूचना समय पर नहीं मिल पाती है।
  • 6. कई शाखाओं में केवल पदाधिकारियों सदस्यों की बैठक आयोजित की जाती है, आम सदस्यों को वर्ष में केवल एक बार वार्षिक या चुनाव सभा में बुलाया जाता है। जिसके कारण संस्था के साथ उनकी घनिष्ठता नहीं बन पाती एवं संस्था केवल कुछ लोगों तक सीमित रह जाती है।
  • 7. गुणात्मक दृष्टि से हीन बैठकें होने पर भी सदस्यों की रुचि कम हो जाती है।
  • 8. सक्रिय रुप से भाग लेने हेतु आग्रह न किया जाना।
  • 9. केवल कार्यक्रमों की बहुलता, किन्तु नेतृत्व विकास का अभाव।
  • 10. समितियों का दुर्बल होना।
  • 11. कार्यक्रमों का नीरस होना।
  • 12. सदस्यों के अच्छे समूह का अभाव।
  • 13. दुर्बल नेतृत्व।

अतएव पदाधिकारियों का कर्तव्य है कि उपरोक्त मुद्दों पर अपना ध्यान केन्द्रित करें एवं उपरोक्त कमियों को दूर करते हुए सदस्यों को संगठन से जोड़े रखने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहें।

1 comment:

Sumit Chamria said...

बहुत ही सुंदर लेख, इसका मनन करके हम काफी आगे निकल सकते हैं.

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