वैश्विक मंदी के कारण देश की अर्थव्यवस्था के साथ व्यापार, वाणिज्य का सिरमोर कहलाने वालां मारवाडी समाज भी कुछ अच्छी स्थिति में नही है। जिस तरह से यह मंदी मध्यम वर्ग को प्रभावित कर रही है, उसी तरह अब यह संक्रमण उच्चा वर्ग को भी प्रभावित करेंगा, जिसका परिणाम भयंकर भी हो सकते है। व्यापार और वाणिज्य में उधर लेने और देने की एक सामान्य प्रक्रिया है, बैंको से उधार कर व्यापार करना मारवाडी ससमाज का रोजाना का काम है। वैश्विक मंदी की वजह से अब यह लगने लगा है, कि अर्थ के स्त्रोत अब सूखने की कागर पर है। समाज में जब हमारा मापदंड अर्थ है, ऐसे में जो लोग इस वैश्विक मंदी को नही झेल पाए है, उनका क्या हश्र होगा, यह सोचने की बात है। शेयर बाजार ने जब से गोता लगाना शुरू किया है, तब से मध्यम दर्जे के निवेशको ने हरकंप मच गया है, वे अपना कदम फूंक-फूंक कर रख रहे है, फिर भी अपने नुकसान कि भरपाए नही कर पा रहे है, ऐसी स्थिति में हम क्या कर सकते है, यह हमें इस अधिवेशन के दौरान सोचना चाहेये, देश के २००० युवाओ के पास इस गंभीर स्थिति से बचने के लिए कोई न कोई रास्ता जरूर होगा। क्या हम अपनी फिजूल खर्ची पर रोंक लगा सकते है, यह भी एक यक्ष प्रश्न है। हम हमारी शादी विवाह के दौरान जरूरत से ज्यादा खर्च करते है, जिससे अक्सर हमारें बजट फ़ैल हो जाते है, और एक ख़राब उदहारण कि स्थपाना हो जाती है। क्यो नही हम अपने आप को बदलने की शुरुवात करें, और समूचे विश्व को दिखा दे कि हम वह कोम है जो कमाना जानती है, खर्च करना जानती है, और बचाना भी जानती है।
नए वर्ष का यह एक संदेश हो सकता है, कि कम खर्च करो,कम उधार करों, देनदारी से मुक्ति पावो, प्रेम और ताज़ी हवा में आनंद लो, और समूचे विश्व को एक विशिस्ट जीवन शैली का संदेश दो। सभी को नव वर्ष की अग्रीम शुभकामनाये।
रवि अजितसरिया
गुवाहाटी
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