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प्रस्ताव क्यों-2

प्रस्ताव सम्बंधित अपने प्रथम अंक में मैंने एक सवाल किया था- क्या इसका यह अर्थ निकला जाए कि प्रतिनिधि सभा सीधे सदन में आए प्रस्तावों पर चर्चा नहीं कर सकती ? इसका उत्तर किसी पाठक ने नहीं दिया। मेरा उत्तर तो यही है - कर सकती है
दुसरे लेख में हम प्रस्तावों की प्रासंगिकता पर चर्चा कर रहे थे। शाखाओं द्वारा दिए जाने वाले प्रस्तावों पर बात अधूरी रह गयी थी। शाखाएं भी यदि सदस्यों (?) के नाम से अपने प्रस्ताव रा० सभा में भेज दें तो फिर प्रतिनिधि सभा में शाखाओं के प्रस्तावों की कोई जरूरत नहीं रहती।
हाँ एक बात और है कि शाखा को रा० सभा में अपने नाम से प्रस्ताव भेजने का कोई अधिकार नहीं दिया हुवा है, पर शाखा द्वारा मनोनीत सदस्य रा० सभा में प्रस्ताव रख सकते हैं।

साधारण सदस्य:-
यदि धारा १५ (उ ) में लिखे 'सदस्य' शब्द को धारा २६ (e) में लिखे 'सदस्य' शब्द के सामान ही पढ़ा जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि साधारण सदस्य अपना प्रस्ताव दोनों यानि रा० सभा एवं प्रतिनिधि सभा में भेज सकता है। यानी सदस्यों के प्रस्तावों पर रा० सभा में चर्चा हो सकती है।
प्रांतीय सभा
अब आते हैं, प्रांतीय सभा के प्रस्तावों पर। शाखाओं की तरह प्रांतीय सभा को भी यह अधिकार नहीं हैं कि अपने प्रस्ताव राष्ट्रीय सभा में रख सके। लेकिन प्रांतीय सभा चाहे तो प्र० अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, अथवा महामंत्री के नाम से प्रांतीय सभा के प्रस्ताव रा० सभा में उठा सकती है।

दुसरे शब्दों में देखा जाए तो निष्कर्ष यही निकलता है कि अधिवेसन की प्रतिनिधि सभा के वजाय प्रस्ताव सम्बंधित सारे कार्य रा० सभा में पुरे किए जा सकते हैं। लेकिन क्या ऐसा है? जी नहीं।

प्रतिनिधि सभा में पारित किए जाने वाले प्रस्तावों की अपनी अहमियत है। समझने की बात यह है कि रा० सभा में मंच की सामान्य नीतियों के सम्बन्ध में प्रस्ताव गृहीत किए जा सकते हैं, और प्रतिनिधि सभा में extra ordinary प्रस्ताव भी पारित किए जा सकते हैं। मेरे विचार से प्रतिनिधि में सिर्फ़ ऐसे प्रस्तावों पर ही चर्चा होनी चाहिए, जो कि मंच की नीति सम्बंधित हो और जिन प्रस्तावों का सम्बन्ध व्यापक समाज से हो। कुछ लोग यह मानते हैं कि प्रतिनिधि सभा में लोक दिखाऊ प्रस्ताव लिए जाने चाहिए- और मैं उन लोगो से असहमत नहीं हूँ।

राज कुमार शर्मा

2 comments:

Anonymous said...

यह क्या हो रहा है अजातशत्रु जी, शम्भू जी, राज कुमार जी, रवि जी!
दिसम्बर की ठंडी का असर आ रहा है क्या आपके ब्लॉग में? या संवाद को नकारने वाली लॉबी जीत गयी है? ध्यान रखियेगा- आपने जो यात्रा शरु की है उस यात्रा का पहला पडाव बहुत दूर है और रास्ता भी कमोबेश सुनसान ही मिलेगा. हताश होकर यात्रा छोड़ने से पहले अपने उन विचारों के प्रति अपनी प्रतिबध्ता को तौलियेगा और सोचियेगा क्या इस यात्रा को अधूरी छोड़ कर कहीं आप संवाद सूत्र नकारने वाले तत्वों की मुराद तो पुरी नहीं कर रहें हैं?
लोग आपके ब्लोग्स पर आ भी रहे हैं, पढ़ भी रहे हैं, इस बात का इंगित भी दे रहें हैं के मंच के बहुत कम सदस्य ही वेब फ्रेंडली है. चीज़ बदल रही है और बदलेगी- आप इस सकारात्मक बदलाव में तेज़ी लाने हेतु जो प्रयास कर रहे हैं इस ब्लॉग के माध्यम se वह अत्यन्त महत्वपूर्ण साबित होगा. ध्यान रखियेगा ऐतिहासिक कार्यो की recognition अक्सर देर से ही होती है.
PLEASE CARRY ON.

शंकर

Anonymous said...

राज कुमार जी,
कुल मिलकर आप यह कहना चाहते हैं कि नेतृत्व को ध्यान देना चाहिए कि प्रतिनिधि सभा में उन्ही प्रस्तावों पर चर्चा होनी चाहिए जो कि असाधारण प्रस्ताव हो, व्यापक समाज से सम्बन्ध रखते हो और जिसे public face के रूप में व्यवहार किया जा सके.
मैं भी आप कि बातों से सहमत हूँ.

शंकर

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