राष्ट्रीय अधिवेशन कुशलता पूर्वक सम्पन्न हो चुका है। मेजबान शाखा एक और अपनी थकान मिटने में लगी होगी तो दूसरी और नई समिति एक नई उर्जा के साथ नई रणनीति बनाने में जुटी होगी। दोनों ही बातें अपनी-अपनी जगह सही है लेकिन मेजबान शाखा का दायित्व एक तरह से इस बात के साथ ख़तम हो जाता है की उन्होंने एक नया राष्ट्रीय अध्यक्ष हमें दे दिया है और अब बाकि के समय में उसे युवा साथियों के साथ मंच दर्शन के प्रति समर्पित होकर खरा होकर दिखाना है। मंच अपने स्थापना काल से ही चुनौतियोंका सामना करते आया है और नई उसके रास्ते में खड़ी रही है। बावजूद इसके की मंच आज रजत जयंती के द्वार तक पहुँच चुका है। कुछ बातों पर पर तो तुंरत ध्यान देना जरुरी है। पहली बात के टूर पर में जिस बात कीऔर ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ वह है राष्ट्रीय मुखपत्र मंचिका को पुनः अपने स्थान पर लाना । देख रहा हूँ की मंचिका अब सिर्फ़ एक स्मारिका बन कर रह गई है। जबकि एक स्मारिका और मुखपत्र में फर्क समझा जाना चाहिए। मुखपत्र के रूप में मंचिका के ऐतिहासिक गौरव की गरिमा को वापस लौटा लाने की जरुरत महशुस कर रहा हूँ। आशा है नव नेतृत्वा इस पर गहरैपूरावाकविचार करेगा । आगे फ़िर पुनः चर्चा करेंगे।
किशोर कुमार जैन
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1 comment:
अच्छा लिखते हैं आप ...लिखते रहे
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
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