इस ब्लॉग को प्रारम्भ करने का उद्देश्य: मंच की दशा और दिशा पर चर्चा करना। यह संवाद यात्रा AIMYM द्वारा अधिकृत नहीं है। संपर्क-सूत्र manchkibaat@gmail.com::"

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ये क्या हो रहा है?



इस ब्लॉग के प्रथम पोस्ट अजातशत्रु जी ने इस ब्लॉग का उद्देश्य बताया था- मंच की दशा और दिशा पर चर्चा करना। चर्चाएँ दो तरफा संवाद से ही हो सकती है- एक तरफा संवाद से नही। एक तरफा संवाद चर्चाओं की श्रेणी में नही आता, आम भाषा में उसे DICTETA कहा जाता है। ब्लॉग की इस यात्रा के दौरान ये चर्चाएँ चालू हुई, आगे भी बढ़ी, अंतराल भी आया, व्यवधान भी आए, बिषयांतरण भी हुवा लेकिन ब्लॉग यात्रा आगे बढती रही। अपने सीमित साधनों में, इस ब्लॉग ने एक NOTICE BOARD की भूमिका निभाने की कोशिश भी की।
चुनाव पर भी चर्चा प्रारम्भ हुई। ब्लॉग ने प्रारम्भ में ही अपने तेवर दिखा दिए थे। ब्लॉग का मानना था कि ऐसे संवाद सूत्रों से ही चुनाव प्रक्रिया में दिख रही खामियों पर चर्चा की जा सकती है और नेतृत्व का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है। उद्देश्य किसी को ग़लत ठहराने का नही, उद्देश्य यह था कि चुनाव प्रक्रिया में समयानुकूल परिमार्जन की आवश्यकता पर नेतृत्व का ध्यान आकृष्ट किया जाए।
आज का सर्वश्रेष्ठ विचार

जब भी कहीं कोई चर्चा होती है, त्वरित रूप से वक्ता को या चर्चा को सकारात्मक या नकारात्मक करार दे दिया जाता है। आख़िर क्या होती है सकारात्मकता? जो हो रहा है, उसे अक्षरशः स्वीकार कर लेना और स्तुति- गान करना! यदि यही सकारात्मकता है, तो क्षमा कीजिएगा, ऐसी सकारात्मकता कि जगह सिर्फ़ अधिनायकवादी संस्थाओं में होनी चाहिए।

इतनी बड़ी और इतने शिक्षित लोगो के इस संस्था के राष्ट्रीय चुनाव प्रक्रिया में कोई तकनिकी खामी न रहे, यह इस ब्लॉग की अभिलाषा थी।

लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को टूकड़े में नही अपनाया जा सकता है। अगर हम सदस्यों को मतदान का अधिकार देते हैं तो प्रत्यासी के बारे में जानकारी प्राप्त करने और प्रश्न पूछने का अधिकार भी उन्हें देना ही होगा। अगर इस बात की चर्चा यह ब्लॉग करता है तो ग़लत कहाँ है? अगर कोई सदस्य या शुभ-चिन्तक प्रत्याशियों से किसी सवाल के जवाब की अपेक्षा रखता है या किसी प्रत्याशी के विचार या कार्य विशेष का विरोध करता है तो हर्ज़ कहाँ है? समझ में यह नही आता कि हम विपरीत विचारों
और आलोचनाओं से इतना घबराते क्यों हैं?

जब भी कहीं कोई चर्चा होती है, त्वरित रूप से वक्ता को या चर्चा को सकारात्मक या नकारात्मक करार दे दिया जाता है। आख़िर क्या होती है सकारात्मकता? जो हो रहा है, उसे अक्षरशः स्वीकार कर लेना और स्तुति- गान करना! यदि यही सकारात्मकता है, तो क्षमा कीजिएगा, ऐसी सकारात्मकता कि जगह सिर्फ़ अधिनायकवादी संस्थाओं में होनी चाहिए।

असहमति या विरोध के स्वर हमेशा नकारात्मक ही होंगे। जब भी चर्चाएँ होंगी सहमति, असहमति, समर्थन, विरोध हर तरह के भाव सामने आएँगे ही। ऐसी चर्चाओं पर नकारत्मकता का लेबल लगा कर यदि हम उनका विरोध करते हैं तो कहीं न कहीं हम लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विरोध करते हैं। यदि किसी को कोई बात ग़लत लगती हो तो उसे पुरा अधिकार है कि वो उस बात का
विरोध करे। और यह अधिकार सभी को है।

विचार मंथन होगा तो अमृत से पहले गरल निकलेगा, और गरल पान करने के लिए शंकर को बाहर तलाश करना व्यर्थ है, हम सभी को अपने अन्दर एक शंकर जगाना पड़ेगा। इस ब्लॉग के स्लोवगान को पढ़े "एक नए सागर मंथन की आश् लिए जग बैठा है" और उससे आगे की पंक्ति के बारे में सोचिए
जो है "कौन पिएगा बिष का प्याला?"

एक बंधु ने हाल ही में इस ब्लॉग पर अपनी आखिरी पोस्ट दी है, और इस ब्लॉग से असहमति प्रगट की है। इन महोदय की लेखनी ने मुझे बहुत प्रभावित भी किया था। पर उनके इस कथित अन्तिम पोस्ट ने मुझे काफ़ी असमंजस में डाळ दिया। उनकी असहमति सर माथो पर। लेकिन क्या वो उस पोस्ट को लिखे बिना स्वयं को इस ब्लॉग से अलग नहीं कर सकते थे? इन बंधु से मेरा विनम्र निवेदन है कि वे अपने निर्णय पूर पुनः विचार करें।

अजात्शत्रु जी से मैं अनुरोध करूंगा कि कृपया अब एक भी बेनामी टिप्पणी प्रकाशितन होने दें।

VINOD KUMAR LOHIA
094351-06500

4 comments:

ओमप्रकाश अगरवाला said...

प्रमोद जी शाह ने कभी कहा था:-
बनी बनाई पगडण्डी पर चलना कितना अच्छा है
जिसने कोई राह बनाई, वो अक्सर बदनाम मिला.

ओमप्रकाश अगरवाला
९४३५०-२४२५२

Anonymous said...

शब्दों की श्रृंखला से विचारों की अभिब्यक्ति होती है
विचारों की श्रृंखला से ब्यक्तित्व की अभिब्यक्ति होती है
ब्यक्तित्व के श्रृंखला से समाज की अभिब्यक्ति होती है
एक अच्छे समाज के लिए उपरोक्त सभी का अच्छा होना आवश्यक है

AJATSHATRU

Anonymous said...

अभिव्यक्ति!

जो कुछ जिया
भावों से लिया
औ' अंकित किया
बंद पृष्ठों की धरोहर
किसने देखी, किसने सुनी।

दिशा मंच की
मुखर अभिव्यक्ति ही
हस्ताक्षर के नाम की
पहचान बन गई,
सबने सुनी सबने पढ़ी।

नहीं पता सराही गई
या फिर आलोचित हुई,
मौन रही या मुखरित हुई
छुआ मर्म या असफल रही
अंतर्वेदना मेरी हर किसी ने सुनी।

औरों की पीड़ा जीकर
शब्दों में ढाल दी
सबसे बाँट ली
कुछ तो दिया उनको ,
कुछ तो लिया उनसे.

धन्य मेरी अभिव्यक्ति हुई
एक प्रश्न बन
मजबूर कर गई मनों को
जो सबने देखी सबने सुनी।

COURSEY:-
रेखा श्रीवास्तव (HINDIGEN)
कानपुर, India

रवि अजितसरिया said...

kya khoob rahi

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