पिछले दो दिनों की तीन घटनाये - अजातसत्रू से परसों (१७ तारीख) ब्लॉग के बारे मे बातचीत हो रही थी। ब्लॉग पर नए विचारों का प्रवाह रुक सा गया है ऐसा लग रहा था। कल (१८ तारीख) जब सुबह सुबह अख़बार खोला तो श्रीमान ओंकारजी पारीख के लेख पर नज़र पड़ी - मारवाडी युवा मंच - दशा, दिशा और लक्ष्य। लेख पढ़ कर मन मे काफी छोम हुआ। कल दोपहर को ब्लॉग पर भाई अनिल की पोस्टिंग पढ़ी - ब्लॉग पर उपस्थित हो रही ओछी बातों के चलते ब्लॉग से विरक्ति।
इन तीनों घटनाओं के चलते एक लंबे समय बाद अपने वीचारों को शब्दों का जामा पहनाने की हिम्मत जुटा ब्लॉग पर पोस्टिंग करने बैठा हूँ।
ओंकारजी ने मंच दर्शन पर जो टिपण्णी की है वो जायज नही हैं। ओंकारजी काफी पुराने लेखक है, पर उनकी ऊँची सोच से बहुत ऊपर मंच दर्शन में छुपा हुआ भाव हैं। श्रद्धेय प्रमोध्जी सराफ ने जब मंच दर्शन को शब्दों में पिरोया तो एक ऐतिहासिक document का निर्माण हुआ। और ये बन गया मंचिस्तो की गीता, बाइबल, कुरान।
ओंकारजी के विचार की "एक युवा संगठन का आधार, जनसेवा कभी नहीं होना चाहिए" कोई नया विचार नही हैं। यहाँ तक की मंच के सदस्य, नेत्रत्व भी अक्सर ऐसे विचार से दो-चार हो रहा होता है। समस्या ये हैं की बगेर मंच दर्शन को पढ़े और उसको आत्मसात किए हम निकल पड़ते हैं टीका टिपण्णी करने को। मंच द्वारा जनसेवा के कर्योकर्मो का संपादन एक बिल्कुल नई सोचपर आधारित हैं।
मंच दर्शन में "मंच आधार - जन सेवा" के लिए प्रमोध्जी ने लिखा हैं - "पुरे राष्ट्र में समाज द्वारा स्थापित व संचालित सेवा के मन्दिर येही संकेत करते हैं की जनसेवा हमारी विरासत हैं। इसलिए भी हमारा कर्तव्य था की विरासत को ही मंच का आधार बनाये। फर्क सिर्फ़ इंतना लाये की अनगनित लेबेलो को हटा कर हमारा पहिचान शब्द "मारवाडी" व्यवहार में लाये। तभी बनेगी साख, समाज की। जनसेवा के लिए आवश्यक नही हैं, भवनों का बनाना। आवश्यक हैं जनसेवा की भावना रखते हुवे उपलब्ध भवनों को प्रयोग में लाना। अन्धो के उपचार हेतु अस्पताल का निर्माण ही सेवा नही बल्कि अन्धो को सहारा देकर सड़कपार करवा देना भी सेवा हैं। सेवा धन ससे ही नही, श्रम से भी होती हैं। श्रमदान अर्थदान से बड़ा हैं, छोटा नही। अर्थदान तब तक जनसेवा कहलाने का अधिकारी नही जब तक श्रमदान उसके संग न हो। ऐसे जनसेवा कार्यक्रमों को युवा मंच का आधार घोषित करता हैं - हमारा दर्शन।"
एक वक्त था जब हर तरफ़ हमारे समाज को हिकारत की नज़र से देखा जाता था - बड़े पैमाने पर जनसेवा के कर्योकर्मो के बावजूद। लेकिन आज चाहे असम हो या उड़ीसा युवा मंच द्वारा संपादित जन सेवा के कार्यक्रमों की बदोलत ही सम्भव हुआ हैं की स्थानीय समाज में, प्रसाशन में समाज की छवि में बड़े पैमाने में सुधार हुवा हैं।
मंच सदस्यो से अनुरोध रहेगा की मंच दर्शन पर चिंतन और मनन जरुर करे। और इधर उधर की टीका टिप्पणियो से प्रभावित हो अपने लक्ष्य से न भटके। इति।
प्रमोद कुमार जैन, गुवाहाटी
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मंच दर्शन: समस्त मारवाड़ी समाज को एक सूत्र में पिरोने व उसे राष्ट्रीय धारा से जोड़े रखने का एक ऎसा सूत्र है जो मारवाड़ी युवकों के भटकाव को रोक कर विकास की ओर मोड़ देता है। इसके पाँचों दर्शन का अध्ययन किया जाये तो पता चलता है कि इसके पीछे कितनी गहरी सोच रही होगी। हमें भाई प्रमोद्ध जी सराफ ने यह सूत्र देकर युवावर्ग एक दिशा प्रदान कर दी है। जिसके लिये हम उनके आभारी रहेंगें। - शम्भु चौधरी, कोलकाता
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