स्वागत योग्य कदम है. पहले ही हो जाना चाहिए था, देर आए दुरुस्त आए. मेरी अन्तिम (????? मेरी तरह आप भी मुस्कुरा रहे होंगे) पोस्ट के बाद कई टिप्पणियां आई. मैंने सभी टिप्पणियों का गहरे से अध्ययन किया, जिस तरह की इस ब्लॉग की सभी पोस्ट और टिप्पणियों का करता हूँ. मंच मेरे खून, मेरी साँस और मेरी आत्मा में बसा है. मंच से जुड़ी सकारात्मक गतिविधियों से जुड़ने में, मुझे क्षण भर भी देर नहीं लगती और ऐसा ही कुछ इस ब्लॉग से जुड़ते समय भी हुआ. किंतु कुछ बेनामी टिप्पणियों को देख कर बुरा लगा, किंतु विश्वास था की उन्हें हटा दिया जाएगा. ये टिप्पणियां ऐसी थी जिनमे कोई गुमनाम शख्स, वरिष्ठ मंच सदस्यों का नाम लेकर उन पर इल्जाम लगाता था. आप की तरह ही मैं भी मंच को अपना परिवार, और सभी सदस्यों को आत्मीय मानता हूँ. मैं हर उस शख्स की बहुत इज्जत करता हूँ जिसने अपने घर-परिवार और व्यवसाय से समय निकाल कर अपना तन-मन-धन हमारे इस वृहद् परिवार को अर्पित किया.
शायद इस लिए इनके साथ ऐसा होते देख कर भी, चुपचाप यहाँ बने रहना उचित नहीं लग रहा था. किंतु अभी-अभी अजातशत्रु जी की, पिछली पोस्ट को पढने के बाद रहा नहीं गया, स्वागत योग्य कदम. आपका छोटा भाई पुनः आपके बीच मौजूद है. अपना स्नेह देने हेतु आपका धन्यवाद
- अनिल वर्मा, ०९८३५२८५५९६
3 comments:
bahut sahi kaha aapne....sahi main swagat yogaya kadam hai....
aabhaar
अनिल जी, मैं तो सोच में पड़ गया था कि आपमें इतनी उर्जा है, शायद ही मंच में कोई आप जैसा व्यक्तित्व होगा जो यूनिकोड को इस रफ्तार से शुद्ध-शुद्ध लिखता हो। आपके कई लेख 'रपट: कोशी का कहर' बिहार मंच के ब्लॉग पर पढ़ने को मिला था। कई बार तो मन किया कि आपको ओर उत्साहित किया जाय,पर रूक गया कि शायद अभी आपके लेख ओर पढ़ने के बाद आपके बारे में कुछ लिखूगां। बीच में ही आपने जल्दीबाजी कर दी। शायद यहआपके जीवन को नी दिशा देगी। चलिये कोई बात नहीं: मेरी दो पंक्ति आपके लिये।
दो कदम हम साथ-साथ चलते हैं,
जिन्दगी तो राह में ही रूक जायेगी।
आपको हमारी बातें याद रह जायेगी।।
चल सको तो दोस्त कुछ ऎसा करो।
बात भी बन जाये, दोस्त भी रह जाय।
सब कोई कहते हैं:
"बच गये तो फिर मिलेगें"
हम सभी कहते हैं:
"मिलते रहे तो- हम बचेगें" - शम्भु चौधरी,कोलकता
आपका स्नेह और मार्गदर्शन ही मेरी सबसे बड़ी पूँजी है. आभार
- अनिल
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