बाढ़ के बाद बिहार :
खुले आकाश तले ये सर्द रातें कैसे कटेगी? कोसी क्षेत्र के लाखों बाढ़ पीडितों के मन में अब यह नया सवाल कौंधने लगा है. वे इस अहसास से ही सिहर रहे है. बाढ़ ने घर-मकान, दूकान-सामान, खेत-खलिहान सब बर्बाद कर दिया. और अब ठण्ड की मार. जब तन ढकने के लिए कपड़े न हों ऐसे में गरम कपड़ा कहाँ से लायें. त्रिवेणीगंज, मधेपुरा, फोरबिसगंज, सहरसा, मुरलीगंज, प्रतापगंज आदि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के सामने आज यह सबसे बड़ा सवाल मुह बाये खड़ा है. कैसे कटेगी ये सर्द ठिठुरती हुई रातें? अब तो न सरकार कहीं दिखाई दे रही है और न ही विपक्षी दल.
अन्य क्षेत्रों की तुलना में कोसी की भौगोलिक संरचना में भी फर्क है - यह चारों ओर से खुला है. नदी के किनारे बसेरा है. हवाएं सीधी चोट करती है. कहीं कोई रुकावट नहीं. सर्द हवाएं हड्डियाँ तक कंपा देती है. मुरलीगंज के रमेश कहते है - आधी रोटी खाकर किसी तरह रातें गुजारते है, लेकिन इस ठण्ड से बचना तो नामुमकिन लग रहा है.
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- अनिल वर्मा
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