कल इस ब्लॉग को प्रारम्भ किए एक माह हो जायेगा। इस एक माह में इस ब्लॉग की यात्रा की समीक्षा भी की जानी चाहिए। आइये, इस एक माह की यात्रा पर एक दृष्टीपात करें।
क्या पाया?
सर्वश्री बिनोद रिंगानिया, शम्भू चौधरी, रवि अजितसरिया, ओमप्रकाश अगरवाला, अमित अगरवाला, राज कुमार शर्मा, सुमीत चमरिया, किशोर कुमार काला आदि नें बिभिन्न बिषयों पर अपने विचार रखें। उन विचारों पर कुछ टिप्पणिया भी प्राप्त हुई। अगर इस एक माह में प्रकाशित संदेशों और टिप्पणियों को प्रिंट किया जाए तो एक अच्छी खासी पत्रिका बन सकती है। इन सभी लेखकों और टिपण्णी कर्ताओं को मैं हार्दिक धन्यबाद देता हूँ।
शब्दों में पिरोये हुवे विचार कभी नहीं मर सकतें। कहीं न कहीं, किसी न किसी व्यक्ति के लिए इन विचारों की कीमत होगी, कहीं न कहीं और कभी न कभी ये विचार रूपी बीज पल्लवित और पुष्पित होंगें. इस ब्लॉग में visit करने वाले साथियों की रोजाना बढ़ रही संख्या हमें एक बेहतर कल की झलक दिखाती है।
क्या खोया?
सिर्फ़ वक्त।
नेतृत्व की भूमिका
मुझे नहीं पता कि इस बात पर दुःख किया जाए, आक्रोश दिखाया जाए या इस बात से हताश हुवा जाए कि एक भी राष्ट्रीय या प्रांतीय पदाधिकारी या राष्ट्रीय कार्यकारिणी के एक भी सदस्य द्वारा कोई भी संदेश या टिपण्णी प्राप्त नहीं हुवा है। इस अवहेलना के पीछे इन्टरनेट के प्रति अज्ञानता, समय कि कमी आदि कारणों को नकारा नहीं जा सकता है। लेकिन इन सब कारणों के बावजूद यह बात कहीं न कहीं स्थापित होती दिख रही है कि आज के व्यस्त नेतृत्व के पास सदस्यों के विचार जानने या किसी संवाद यात्रा में शामिल होने का वक्त या इच्छा नहीं है। नेतृत्व द्वारा इस ब्लॉग को सहयोग न किया जाने की बात कहने का तात्पर्य यह नहीं है, कि असहयोग से इस ब्लॉग का कोई नुकसान हुवा है। बल्कि, मेरा तो मानना है, कि नेतृत्व द्वारा कि गयी अवहेलना ने इस संवाद सूत्र को प्रासंगिक और सामयिक प्रमाणित किया है। नेतृत्व द्वारा संवाद को नकारा जाना (बहाना चाहे कुछ भी हो) कहीं न कहीं ऐसे संवाद सूत्र की प्रासंगिकता को स्थापित ही करता है।
आगे क्या करना है?
एक माह में प्राप्त उपलब्धियां हमारी प्रेरणा स्त्रोत है और हम आप सभी के सहयोग से इस संवाद यात्रा को जारी रखेंगे और यह चाहत करेंगे कि मंच का हर एक साथी, हर एक विचारवान मारवाडी इस यात्रा में हमारा हम-राही बनें। हमारा आप सभी से सादर अनुरोध है कि कृपया इस यात्रा को अपने विचारों का अनुदान अवश्य दें। हमारी अच्छी बातों पर हमें शाबाशी दें या न दें, हमारी गलतियों पर हमें नसीहत अवश्य दें।
एक बार पुनः, आप सभी को धन्यबाद।
आपका ही
अजातशत्रु
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1 comment:
बात सही है कि नेतृत्व कि अवहेलना ऐसे संवाद सूत्रों कि प्रासंगिकता और जरूरत को स्थापित ही करता है.
किशोर काला
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