मैंने हर बार सोचा है चाँद को छु लूँ
सोच पर नहीं है कोई लगाम
माँ कहा करती थी बेटा चाँद पर जाना नही है कोई हँसी खेल
मेरे बिचार भी अलग नही थे माँ से
माँ मान नहीं रही और मैं बिस्वास नही दिला पा रहा
की चाँद पर भी लोग रहेंगे
माँ बिश्वास करती है स्वर्ग -नरक पर
पाप पुण्य पर जो मिलते है इस धरा पर
स्वर्ग - नरक माँ की कल्पना नही है
कहती है अच्छा करोगे तो पाओगे स्वर्ग
बुरे कर्मों की बुरी है सजा, दूर इनसे रहा करो
मै भी माँ की सुनता हूँ
मन की करता हूँ
नहीं जानती इसी धरा पर मै नरक के दुख भोग रहा हूँ
उसके bodhe मन की ठेस तीस में न बदल जाए
इसलिए सब भोग रहा हूँ बिना सिसके
माँ के साथ दिन beeta रहा हूँ अपना
asta kसह कर भी उसकी आँखे पूछ रही होती है
कही कोई तकलीफ तो नहीं.
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