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सुसुप्त अथवा निष्क्रिय शाखाओ के ऊपर ध्यान देना आवश्यक

एक प्रश्न बहुत दिनों से मेरे मानस पटल पर अंकित है . इस पर मैं आप सभी की राय जानना चाहता हु. आज के सन्दर्भ में जब मारवाडी युवा मंच की गति विधियों में न केवल समाज वरन सदस्यों की भी रूचि कम होती जा रही है तब हमारे शीर्ष नेतृत्व का मुख्य लक्ष्य नई मंच शाखाओ का गठन हो या सुसुप्त शाखाओ का जागरण . चाहे यह राष्ट्रीय स्तर पर हो या प्रांतीय पर , लेकिंग हमेशा देखा आता आया है की शीर्ष नेतृत्व का ध्यान ज्यादा नई शाखाओ के गठन पर केंद्रित रहता है . मंच की डायरेक्टरी देखने पर मालूम पड़ता है की लगभग २०-२५ प्रतिशत शाखाएँ सुप्त या निष्क्रिय है. मेरा अनुरोध है नए नेतृत्व से की वे इस विषय पर अतिरिक्त ध्यान दे और नई शाखाएँ , विशेष कर एक ही शहर में अधिक शाखाएँ , खोलने के प्रयास को विराम देकर मंच को मजबूत करने की सार्थक पहल करे. आंकडो के जाल में न उलझे . WE WANT QUALITY FIRST... QUANTITY ALWAYS FOLLOWS QUALITY!!!

2 comments:

MANCH said...

आकाश जी का स्वागत है. आपने बहुत सुंदर बात कही है कि "शीर्ष नेतृत्व का मुख्य लक्ष्य नई मंच शाखाओ का गठन हो या सुसुप्त शाखाओ का जागरण".
इसी बात को मैं दुसरे शब्दों में कहना चाहूँगा कि हमें नयी शाखाओं के गठन के साथ साथ इस बात पर भी विशेष ध्यान देना होगा कि हमारी तक़रीबन सभी शाखाएं सक्रिय हो. शाखाओं को सक्रीय करना और नयी शाखाएं खोलना कोई परस्पर विरोधी बात नही है.
आप सभी से अनुरोध है कि शाखाओं को सक्रीय कैसे किया जाए या करवाया जाए, इस विषय पर अपनी सोच प्रेषित करें.

अजातशत्रु

Akash G said...

धन्यवाद अजातशत्रु जी . आशा है की सुसंवाद के इस अनुपम माध्यम से मैं भी अपने दिल की बात मंच साथियों से कह पाउँगा और अपने ज्ञान में भी वृद्धि करूँगा.
इस विषय के ऊपर मेरे कुछ सुझाव है :
१. अगर किसी शहर की आबादी १० लाख से अधिक न हो तो उस शहर में १ शाखा से अधिक न हो .
२. राष्ट्रीय या प्रांतीय पुरुष्कार निर्धारण के समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए की नई शाखाओ को खास कर पुरुष्कृत किया जाए. नई शाखाएँ ज्यादातर पुराणी शाखाओ के मुकाबले कमजोर रह जाती है क्युकि उनमे अनुभव एवं संसाधन, दोनों की कमी होती है .
३. प्रांतीय पदाधिकारियों को नई शाखाओ के एक से अधिक दौरे करने चाहिए. सिर्फ़ अधिकारिक तौर पर एक दौरा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री नही समझ लेनी चाहिए . इन शाखाओ की कम से कम एक साधारण बैठक में प्रांतीय उपाध्यक्ष/ सहायक मंत्री की मौजूदगी अनिवार्य होनी चाहिए.इस से उनको सभा सञ्चालन, भाषण, एवं गतिविधियों के नियोजन आदि में सहयोग प्राप्त होगा.
४ अगर सम्भव हो तो प्रांतीय स्तर पर नई शाखाओ को आर्थिक सहायता भी प्रदान किए जाने का प्रावधान रखा जा सकता है.
५.नई शाखा की सहायता के लिए किसी एक पुराणी शाखा को आवश्यक तौर पर नियुक्त किया जाए. इस से दो फायदे होंगे.. पहला यह की नई शाखा के सदस्य किसी भी प्रांतीय या राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम में अपने आप को अलग थलग महसूस नही करेंगे., एवं दूसरा यह की शाखा के सञ्चालन एवं गतिविधियों की रुपरेखा बनाने में एक अनुभवी साथी उनको स्वतः मिल जाएगा.
६. एक कार्यक्रम आवश्यक तौर पर लिया जा सकता है.. प्रांतीय कार्यकारिणी की एक बैठक नई शाखा में अनिवार्य तौर पर करवाई जाए. इस से नई शाखा के सदस्यों एवम नेतृत्व को वरिष्ट मंच सदस्यों से मिलने का सुअवसर मिलेगा , उनको अपने महत्वपूर्ण होने का तथा अपनी जिम्मेदारियों का भी बोध होगा.

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