दो लोग एक ही राह पर चल रहे थे, एक थोड़ा आगे चल रहा था और दूसरा उसके पीछे. आगे वाला सच्चा सिपाही था और तेज चल में चलता हुआ अपने दोनों हाथों को क्रमशः आगे - पीछे भांजता हुआ चल रहा था, इससे पीछे वाले की नाक में उसके हाथ से बार - बार चोट लग रही थी. आखिर दोनों में बहस हो गयी और इसमें आस - पास के लोग भी शामिल हो गए, गौर कीजिये कितनी हास्यास्पद स्थिति पैदा हो गयी,
पहला - देख कर नहीं चल सकते, देखते नहीं मेरी नाक में चोट लग रही है।
दूसरा - मैं आजाद भारत का आजाद नागरिक हूँ, कहीं भी कैसे भी हाथ - पैर हिला कर चल सकता हूँ, संविधान ने मुझे ये अधिकार दिया है।
पहला - ये बात सही है पर आपकी स्वतंत्रता वहाँ समाप्त होती है जहाँ मेरी नाक शुरू होती है।
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161
1 comment:
बुडापेस्ट से प्रकाशित होने वाले एक समाचार पत्र के रिपोर्टर ने राह चलते एक व्यक्ति से पूछा ,"दो गुने दो कितने होते हैं "
"चार, पर इसमे पूछने की क्या बात है ? दो गुने दो चार होते हैं. " उस व्यक्ति का उत्तर था.
"क्या आपको पुरा विश्वास है की दो गुने दो चार ही होते हैं "
"हाँ ,दो गुने दो चार ही होते हैं ."
"सचमुच ?"
"हाँ, सचमुच.मैं इस बात पर ख़ुद को दाव पर लगाने को तैयार हूँ "
"वाह ! क्या कहने ,अच्छा तो आप मुझे यह बात लिख कर दे सकतें हैं ?"
"क्या ?"
"यही की दो गुने दो चार होते हैं ..बस आप यह लिखकर आज की तारीख डालकर निचे अपने दस्तखत कर दीजिये "
"आप बड़े मुर्ख जान पड़ते है.खैर मेरे पास कलम नही है "
"आप कलम की चिंता न करें मेरी कलम से लिख दीजिये"
"मैं दूसरों की कलम का उपयोग नही करता इससे छूत का भय रहता है "
"अच्छा चलिए मैं आपको नई कलम खरीद कर देता हूँ "
"तुमने क्या मुझे भिखारी समझ रखा है .मेरे घर पर मेरी अपनी बीसिओं कलमें हैं "
"कोई बात नही .क्या आज शाम को मैं आपके घर आ सकता हूँ ?"
"यदि तुम मेरे घर आओगे तो मैं तुम्हे धक्के मारकर निकाल दूंगा "
"अच्छा! तो यह बताइए दस्तखत करने में क्यों हिचकिचा रहे हैं? आपने अभी-अभी कहा है की दो गुने दो चार होते हैं ,और इस बात पर आप ख़ुद को दाव लगाने को तैयार है. "
"हाँ यह तो है ही ,पर मैं कभी भी तुम्हे यह लिखकर नही दूंगा. तुम उसे बाद में कभी भी किसी कोभी दिखा सकते हो "
"तो इससे क्या हुआ? दो गुने दो तो हमेसा चार ही होते हैं न ?"
"हाँ ,होतें हैं पर भाई देखो मैं बाल -बच्चे वाला आदमी हूँ कभी राजनीती के चक्कर में नही पड़ता "
"पर यह राजनीती नही है "
"यह मैं नही जानता,पर मैं बचकर रहना चाहता हूँ. मैं नही चाहता की तुम्हे ऐसा लिखकर देने के कारन मैं किसी परेशानी में पड़ जाऊँ "
"अच्छा तो आप एक काम करें मैं स्वंय एक कागज पर लिख देता हूँ कि दो गुने दो चार होते हैं.बस आप उसपर दस्तखत कर दीजिये तब आपकी भी छुट्टी और मेरी भी, और आपको किसी भी प्रकार की परेशानी का खतरा भी नही रहेगा "
"यह तो वही बात हुई ! अगर तुम चाहो तो मैं यह लिखकर दे सकता हूँ कि आजकल सामान्यतः लोग मानते हैं कि दो गुने दो चार होते हैं .ठीक है न ? "
"नही .मैं आपकी राय जानना चाहता हूँ क्योंकि मैं लोगों के निर्भीक वक्तव्य एकत्र कर रहा हूँ "
"तब तुम भाड़ में जाओ मैं कुछ भी लिख कर देने वाला नही ."
"ठीक है ,पर यह भी याद रखिये. मैं सब लोगों से कह दूंगा की आपने कहा था, दो गुने दो चार होते हैं "
"मुझे इसकी चिंता नही मैं इंकार कर दूंगा की मैंने ऐसा कभी कहा था"
[साभार :- कादम्बिनी ]
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