इस ब्लॉग को प्रारम्भ करने का उद्देश्य: मंच की दशा और दिशा पर चर्चा करना। यह संवाद यात्रा AIMYM द्वारा अधिकृत नहीं है। संपर्क-सूत्र manchkibaat@gmail.com::"

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इस ब्लॉग में मेरी अन्तिम पोस्ट

मंच में चुनाव एक स्वस्थ लोकतान्त्रिक परम्परा को दर्शाता है किंतु इसका मतलब ये नहीं कि हम इस चुनाव के नाम पर किसी पर भी व्यक्तिगत टिप्पणी करना शुरू कर दे. इस ब्लॉग को जिस मकसद से मैंने ज्वाइन किया था, लगता है वो यहाँ पूरा नहीं हो सकता. अब इस ब्लॉग पर चुनाव सम्बन्धी छींटाकशी ही अधिक हो रही है. सकारात्मक सोच का अभाव दिख रहा है.
मैं इन्टरनेट, ब्लॉग और संवाद के सभी नवीन माध्यमों का पुरजोर समर्थक रहा हूँ, किंतु यह ब्लॉग जिस राह पर चल पड़ा है, उससे असहमति जताता हूँ एवं ब्लॉग ऑनर महोदय से अनुरोध करता हूँ कि मेरा नाम ब्लॉग लेखकों की सूची से हटा लें. धन्यवाद

- अनिल वर्मा, प्रांतीय महामंत्री, बिहार

10 comments:

nadeem said...

बंधू बहुत जल्दी हार गए. पर आपके विचार अन्य किसी ब्लॉग पर जानने की इच्छा रहेगी ही. उम्मीद है आप ही कुछ सकारात्मक लिखेंगे. और हाँ कलात्मक भी.

P.N. Subramanian said...

आपने स्वयं का ब्लॉग बना लें.

Anonymous said...

क्या बात है साहब.. आप आये.. और आकर चल दिये.. जरा रुकिये.. दे्खिये..

Anonymous said...

श्री अनिलजी की टिपण्णी पढ़ कर मन मैं तकलीफ हुई. मैंने आप के सब पोस्ट पढ़े हैं और महसूस किया की आप अच्छा लिखते हैं. आप से अनुरोध रहेगा की आप अनवरत लिखते रहे और ब्लॉग पर प्रकाशित हो रही कुछ ओछी टिपण्णीयो से निराश न हो. ब्लॉग ओव्नेर ने सेंसरशिप चालू नही की हैं. और यह एक अच्छी बात भी है. let all views flow freely, लेकिन ब्लॉग को इंतज़ार हैं स्वस्थ विचारो के आदान प्रदान का और अगर आप जैसे लेखक पीछे हटना शुरु करेंगे तो फिर बचेगें वेही जिन की यहाँ जरुरत नहीं हैं.

रवि अजितसरिया said...

अनिलजी, आप यह क्या कह रहे है, आपकी लेखनी अपने मकशद में सफल रही है. आपमें वो दर्द है जिसको अपने अपनी लेखनी के द्वारा बेखोबी दर्शाया है. आप बने रहे और इस खुली किताब को पढ़ते रहे और लिखते रहे, यही मेरी आपसे प्राथना है.

Shambhu Choudhary said...

अनील जी, शायद आप वही काम कर रहें है। जो व्यक्तित्व विकास की सबसे बड़ी बाधा है। अभी आपको बहुत कुछ देखना और सुनना है। इस तरह से सभा को छोड़कर जाने से यहाँ लिखने और पढ़ने वाले की कोभ कमी तो नहीं आयेगी, हाँ एक अच्छा साथी हम जरूर खो देगें। आप जिस व्यक्ति के विचार से सहमती नहीं रखते उसे खुल कर लिख दें। मन को भारी रख बात को अधुरी कहे बिना ही चले जाना सही कदम नहीं है। - शम्भु चौधरी

विष्णु बैरागी said...

अन्‍तर्कथा और अन्‍तर्व्‍यथा तो आप जानें या फिर आपका राम । लेकिन हम आपको वचन भंग के दोषी के रूप में देखना चाहेंगे । वैसा सम्‍भव न हो अपनी घर-गृहस्‍थी अलग बसा लें लेकिन मैदान मत छोडिए ।

रवि अजितसरिया said...

I will again request you to start writing on this blog, instead of quitting. Quitting doesnot sove any problem. It increases our mental tension. I am fortunate to look and see your writings on this blog. 'Koshi ke khaschar per thand ki kapappi'. what a wonderful feelings. Please, please don't leave.

Anonymous said...

नमस्कार रविजी लगता है आप काफी Sentimental है. आप आगे बढिए हम सभी आप के साथ है. जिनकी आप बात कर रहे है वे लोग अपने ब्लॉग की मूल उदेसिये से भटक गये है, किंतु वो कुछ लोगो की मानसिकता हो सकती है. आप के पीछे हटने से तो उन्हें बल मिलेगा अतः में भी एक साधारण मंचिस्त के नाते अपील करूँगा की इस ब्लॉग पे निरंतर लिखते रहे.
Bhawant Agrawal
Co-convenor Computer, UPMYM

Anonymous said...

क्या आपको बहुत पहले दिखाया जाने वाला एक विज्ञापन याद है। उस विज्ञापन में एक नन्ही से बच्ची , स्कूल की पास से आने जाने वालों को एक पम्फ्लेट पक्दाती है, जैसे कि अक्सर ही लाल बत्ती पर आपको हमें भी कोई न कोई पम्फ्लेट पकडा देता है, और जैसा कि अक्सर ही होता है कि हम सभी उस पर एक उड़ती हुई निगाह डालते हैं और फेंक देते हैं, ठीक उसी तरह उस बच्ची द्वारा दिए गए कागज़ के टुकड़े को सभी आने जाने वाले हाथ में लेकर थोडा आगे जाने पर फेंक देते हैं। एक स्कूटर चालक जो ये सब देख रहा होता है , वो बच्ची के पास आता है और उसे बताता है कि अब उसे ये पम्फ्लेट किसी के भी हाथ में देने से पहले उसे अच्छे तरह मरोड़ कर देना है। वो नन्ही बच्ची ऐसा ही करती है, फ़िर जिस पहले आदमी को वो ये कागज़ तोड़ मडोदकर देती है , वो पहले उस बच्ची को गौर से देखता है फ़िर उसे कगाज़ के टुकड़े को खोल कर पढने लगता है।

मुझे लगता है कि इंसान का मनोविज्ञान , चाहे उत्सुकता के कारण या फ़िर कि खुराफाती कारणों से अक्सर या ज्यादातर नकारात्मक चीजों की तरफ़ आसानी से आकर्षित होता है। बल्कि ये कहूं कि कि सकारात्मक बातों , चीजों की तरफ़ चाहे एक बार को उसकी नज़र ना जाए या जाए भी तो वो उसे नज़र अंदाज़ कर दे मगर उल्टी भाषा , उल्टी बातों और उल्टी चीजों की तरफ़ उतनी ही जल्दी आकर्षित हो जाता है। किसी बच्चे को आप किसी बात के लिए मन कीजिये तो मैं ये तो नहीं कहता कि शत प्रतिशत , मगर आम तौर पर ज्यादा बच्चे वही काम करने में दिलचस्पी दिखाएँगे। एक और उदाहरण देता हूँ, किसी ने अपने चिट्ठे पर अपने पोस्ट का शीर्षक दिया, इसे बिल्कुल मत पढ़ना, आपन माने या ना मने , मगर उस दिन जितने लोगों ने उसे पढा था उससे पहले उसके पोस्ट को कभी भी इतने लोगों ने नहीं पढा था।
sabhar

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