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परिवर्तन को रोकना असंभव - प्रमोद्ध सराफ


श्री प्रमोद्ध सराफ जी का नया लेख जो कि 'समाज विकास' पत्रिका के नये अंक - दिसम्बर '2008 में प्रकाशित हुआ है।
"मेरा मंच" के पाठकों के लिये यहाँ पर जारी कर रहा हूँ। - शम्भु चौधरी



परिचयः श्री प्रमोद्ध सराफ का जन्म 19 सितम्बर 1952, फतेहपुर (शेखावटी), पिता: श्री लक्ष्मी नारायण सराफ, पत्नी का नामः श्रीमती राजकुमारी सराफ, 1965 में छात्र नेता के बतौर सार्वजनिक जीवन में प्रवेश। आपको अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच के संस्थापक राश्ट्रीय अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है। मारवाड़ी दातत्व औषद्यालय गुवाहाटी के पूर्व मानद मंत्री एवम् कामरूप चैम्बर आफ कॉमर्स, आसाम, गुवाहाटी स्टॉक एक्सचैंज के आप पूर्व सभापति भी रह चुके हैं। आप सामाजिक विषयों के प्रतिष्ठित लेखक के रूप में जाने जाते हैं। आपके लेखों से युवावर्ग पर विषेश प्रभाव पड़ता है। कवि हृदय श्री प्रमोद्ध सराफ ने अनेकों कविताओं की रचना भी की है।
पताः सराफ बिल्डिंग, प्रथल तल, ए.टी.रोड, गुवाहाटी, असम, फोन: 0361-2541381।


परिचर्चा का विषय है: कल, आज और हम। यानी परिवर्तन का हमारे ऊपर प्रभाव। हम यानी हमारा देश, हमारा समाज, हमारा परिवार एवं हमारा व्यक्तित्व।
कल तक कोई न कोई राजनीतिज्ञ हमारे देश का प्रधानमंत्री होता था, परन्तु आज एक अर्थशास्त्री। केन्द्रीय मंत्रिमंडल में बुद्धिवादियों का प्रतिनिधित्त्व बढ़ रहा है परन्तु राज्य मंत्रीमंडल, इस संदर्भ में, अभी भी प्रतीक्षाकाल की स्थिति में है। विकास की राजनीति का प्रतिष्ठाकाल प्रारम्भ हो चुका है, अन्यथा शीला दीक्षित, शिवराज सिंह चौहान व डॉ. रमण सिंह विभिन्न राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि होते हुए भी आज एक साथ अपने-अपने राज्यों में सन्तासीन नहीं होते। यानी जनता ने राजनैतिक दलों की जगह विकास रथ के सारथियों का राजतिलक प्रारंभ कर दिया है। आपसी खीचतान व नकारात्मक प्रवृतियों की अग्नि में रोटी सेंकने की राजनीति नेस्तनाबूद हो रही है, अन्यथा राजस्थान में सत्ता परिवर्तन नहीं होता। केन्द्र व राज्यों में एकदलीय सरकारें इतिहास बन रही थी व बहुदलीय सरकारें एक यथार्थ। विकास की राजनीति व सर्वभागिता सिद्धान्त के बल पर पुनः एकदलीय सरकारें प्रान्तीय स्तर पर उभर रही हैं। राष्ट्रीय हितों व दलीय हितों के सामंजस्य के बल पर नए राजनैतिक समीकरण उभरने शुरू हो गए हैं, अन्यथा समाजवादी दल केन्द्रीय सरकार को अपना समर्थन दे, जीवनदान नहीं देता। निवर्तमान राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे.कलाम के कार्यकाल में उनके लेखों एवं संभाषणों की श्रृंखला का राष्ट्र के युवाओं एवं बुद्धिजीवियों पर व्यापक प्रभाव राष्ट्रपति पद की एक नई भूमिका चिन्हीत करता है। अनुकरणीय आदर्श व्यकिृत्त्व के अभाव में दिग्भ्रमित होती युवापीढ़ी को डॉ. कलाम ने वैचारिक चेतना प्रदान करते हुए दिग्दर्शक के रूप में ऐतिहासिक कार्य किया। यानी देश के राजनैतिक पटल पर शुभ संकेतों के दीयों का जगमगाहट।
कल तक पूंजीवाद समाजवाद एवं साम्यवाद बहस के विषय थे, परन्तु आज आतंकवाद का अर्न्तराष्ट्रीय स्वरूप। हर युवा एवं काल में आतंकवाद किसी न किसी रूप में विद्यमान रहा है। कभी डाकुओं एवं लुटेरों का आतंकवाद वो कभी विभिन्न प्रकार के माफिया वर्ग का। कभी जमींदारों का तो कभी पूंजीवातियों का। कभी राजनेताओं का तो कभी श्रमिक नेताओं का। परन्तु वर्तमान का आतंकवाद भयानक महत्त्वकांक्षाओं का परिणाम है, असफल शासकों का उन्माद है एवं असहिष्णुताओं का वमन है। यह आतंकवाद घृणा की खाद एवं धार्मिक कट्टरता की सिंचाई के बल पर विकसित हो रहा है एवं फलफूल रहा है। आज आतंकवाद की अग्नि दावानल वन आहुतियां मांग रही है -उन प्राणियों की, जो साहसी हैं, कर्तव्यों के पुजारी हैं एवं राष्ट्रप्रेमी हैं। मुम्बई शहर में आतंकवाद के शिकार हुए समस्त अधिकारियों को शत् शत् प्रणाम। प्रभावित नागरिकों का स्मरण कर उनको अश्रु-श्रद्धांजलि। आज का अर्न्तराष्ट्रीय आतंकवाद गुरिल्ला युद्ध का रूप ले चुका है। इस आतंकवाद के खेतों एवं खलिहानों को तहस-नहस करने के सिवाए अन्य कोई विकल्प दिखाई नहीं देता एवं ऐसी सक्रियता में अगले विश्वयुद्ध का खतरा नजर आता है। अर्थात् इस आतंकवाद की समाप्ति हेतु अर्न्तराष्ट्रीय समुदाय तहेदिल से एक साथ नहीं है। यानी अर्न्तराष्ट्रीय पटल पर खतरे के लाल निशानों की मौजूदगी।
कल तक कोटा परमिटों का राज था, परन्तु आज भूमण्डलीकरण एवं उदारीकरण की नीतियां। महंगाई कल भी थी व आज भी है। सट्टाबाजारी का प्राबल्य स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् शनैः शनैः कम हुआ था। परन्तु उदारीकरण की नीतियों के अर्न्तगत, सट्टाबाजी ने वैधानिकता प्राप्त की है एवं साथ में संगठित स्वरूप भी। पिछले कुछ वर्षों में सट्टाजनित महंगाई के विभत्स रूप ने उपभोक्ताओं की योजनाओं को बारंबार विफल किया एवं लघु उद्योगों को अंततः बंदी के कगार पर पहुंचा दिया। उदारीकरण की नीतियों के परिणामस्वरूप रोजगार के अवसरों एवं पारिश्रमिकों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई परन्तु स्वरोजगार क्षेत्र विपरीत रूपेण प्रभावित हुआ। शापिंगमाल संस्कृति ने खुदरा व्यापारियों के समक्ष आस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है। कल हरित क्रांति की चर्चाएं थी, आज सेंसेक्स एवं निफ्टी में उतार चढ़ाव की। वर्तमान में जनसाधारण की समाझ के बाहर है कि एक वर्ष में सेंसेक्स व निफ्टी में 60 प्रतिशत की गिरावट क्यों आई, जबकि देश के वित्तमंत्री प्रायः इस संदर्भ में सकारात्मक बयानबाजी, दूरदर्शन के चैनलों पर सतत् रूप से करते रहते थे एवं देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की मंदी से अप्रभावित बताते थे। सरकारी संरक्षणवाद कल तो था ही परन्तु आज उदारीकरण की नीतियों के युग में भी विद्यमान है। अमेरिका में उन दिवालिया फर्मों को सरकार बचाने में लगी है जिनके दिवालियापन का कारण प्रबंधन का लालच एवं गलत व्यापारिक नीतियां रही है। हमारे देश में पूंजीवादी बड़े प्रतिष्ठानों को ब्याज माफी का इतिहास समय समय पर बनता रहा है, परन्तु इस बार बड़े रूप में किसानों की कर्जमाफी ने संतुलन पैदा करने का प्रयास किया है। निष्कर्ष यही है कि सरकारी संरक्षणवाद कल भी था और आज भी है। स्वरूप में परिवर्तन अवश्य है। ग्रामीण एवं पहाड़ी क्षेत्रों के सही मायनों में विकास हेतु सरकारी नीतियों के सार्थक क्रियान्वयन हेतु सटीक माध्यम की प्राप्ति कल भी दूर थी और आज भी दूर ही है। यानी देश के आर्थिक मानचित्र पर शुभ-अशुभ दोनों संकेत मौजूद हैं। सट्टेबाजी का बढ़ता दायरा भयानक संकेत प्रतीत होता है, स्वरोजगार के अवसरों का कम होना भी भविष्य में खतरनाक सिद्ध हो सकता है। अविकसित क्षेत्रों के विकास की योजनाए सुकून प्रदान करती हैं।
परिवर्तन का प्रभाव हमारे मारवाड़ी समाज पर भी पूर्णरूपेण है। शिक्षा के प्रसार ने समाज बंधुओं की सोच में बड़ा परिवर्तन किया है। आज समाज का युवक स्नातक बनने के पश्चात् पुश्तैनी व्यापार की तरफ उन्मुख नहीं होना चाहता। बल्कि अपनी योग्यतानुसार किसी विषय में विशेष अध्ययन कर, योग्यता हासिल करना चाहता है एवं तदुपरान्त आय अर्जन हेतु क्षेत्र का चुनाव करता है। कल मारवाड़ी समाज में स्वरोजगार में संलग्न व्यक्तियों का सम्मान था। अतः नौकरी पेशा से परहेज किया जाता था। परन्तु आज समाज में नौकरी पेशा संलग्न व्यक्तियों की संख्या तीव्रगति से बढ़ रही है एवं इन्हें यथोचित सम्मान प्राप्त है। शिक्षा क्षेत्र में समाज की महिलायें सफलताओं के नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। रोजगार एवं स्वरोजगार क्षेत्रों में समाज की महिलायें बेहिचक आगे बढ़ रही हैं व उन्हें परिवार का समर्थन प्राप्त है। खुदरा व्यापार में लगे छोटे व्यापारियों पर अवश्य अस्तित्त्व का खतरा पैदा हुआ है। ऐसे समाजबंधुओं को नए सिरे से विचार कर व्यापार के स्वरूप में परिवर्तन लाना होगा।
समाज में संयुक्त परिवार प्रणाली शनैः शनैः लोप हो रही है। परिवारों में आपसी सौहाद्र्र भी घट रहा है। कारणों के विश्लेषण की आवश्यकता है। अर्न्तजातीय विवाहों का प्रचलन बढ़ रहा है। यह भी कहा जा सकता है कि प्रेम विवाहों का प्रचलन बढ़ रहा है। यह परिवर्तन का प्रभाव है। इसे रोकने की न तो आवश्यकता है एवं न ही इस परिवर्तन को रोकना संभव प्रतीत होता है। विवाहों व अन्य परिवारिक उत्सवों के अवसर पर प्रदर्शन एवं अनावश्यक या बूते के बाहर व्यय करना समाजबंधुओं का प्रभाव बनता जा रहा है, जो कि शुभ संकेत नहीं। समाजबंधु मारवाड़ी संस्कृति को इस संदर्भ में भूलते जा रहे हैं। उन्हें पुनः याद करना चाहिये किः


‘‘दो मिनट की रोभली, उम्र भर की शोभली।
दो मिनट की शोभली, उम्र भर की रोभली।’’


इस कहावत में मारवाड़ी समाज की उन्नति का मूलमंत्र दिया हुआ है। मोबाईल संस्कृति व इन्टरनेट की नई संस्कृति से मारवाड़ी समाज के युवा संभव लाभ लेने के बजाए हानि वाले पक्ष पर ज्यादा समय गंवा रहे हैं। समाज के युवाओं में स्वाध्याय प्रवृति का दिनोंदिन ह्रास हो रहा हैं। सामाजिक संगठनों का कर्तव्य है कि इस संदर्भ में चेतना अभियान चलायें। समाज का युवा सामाजिक संगठनों से भी दूर होता जा रहा है। इस संदर्भ में भी यथोचित कार्यक्रमों की अपेक्षा सामाजिक संगठनों से हैं।
मारवाड़ी संस्कृति एवं सभ्यता के विभिन्न पहलुओं की जानकारी समाज के युवाओं को नहीं है। सामाजिक रीति रिवाजों का निर्वाह भले ही समाज का युवा करता हो, परन्तु उद्देश्यों की जानकारी उसे नहीं है। मारवाड़ी संस्कृति के संरक्षण एवं समयानुकूल उचित परिवर्तनों के साथ उसके प्रचार प्रसार की आवश्यकता कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी।[end]

1 comment:

रवि अजितसरिया said...

प्रमोदजी का लेख वर्तमान परिपेक्ष्य में बिल्कुल सटीक बैठ रहा है. एक अर्थशास्त्री, एक सामाजिक कार्यकर्ता और एक प्रगाढ़ मंचिस्त के रूप में हम प्रमोदजी को देख रहे है. उनको हार्दिक बधाई.

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