ग़र्भ में अब मिटाई जाती है ।
भ्रूण हत्या कराई जाती है ॥
आज क्या हो गया ज़माने को ।
बोझ क्योंकर बताई जाती हैं ।।
जिसको रहमत कहा था ईश्वर की ।
अब वो जहमत बनाई जाती है ।।
बेटियाँ जब बहु बना करतीं ।
आग में क्यूँ कर जलाई जाती हैं ॥
जिसने बाबुल के घर को खुशियाँ दी ।
क्यों वो हरदम रुलाई जाती हैं ॥
जग में आने से रोकते हैं क्योंकर ।
जब की लक्ष्मी बताई जाती है ।।
कम से कम इतना तो समझो लोगों ।
क्यूँ ये संख्या घटाई जाती है ।।
इसके होने से ही हम सब होंगे ।
ये समझ क्यों न पाई जाती है ॥
आओ सब मिलके प्रण करें ।
बात हर घर सुनायी जाती है ॥
(साभार - 'खन्ना' मुज़फ्फर्पुरी से)
सुमित चमडिया
मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161
3 comments:
बहुत सार्थक बात पर लिखी गयी सुंदर कविता । बधाई।
प्रदूधित विचारधारा का परिणाम है यह,
ख़ुद को दूसरों से बड़ा मानने का अभिमान है यह.
फूल बन कर बाग़ को महकाउंगी,
मुझे इस धरती पर खिलने तो दो.
अपनी कोख से किसी का वंश भी बढ़ाउंगी,
मुझे किसी कोख में पलने तो दो.
सुमित जी कविता पढ़कर ये दो पंक्तिया मेरे भी ध्यान में आ गयी.
ajatshatru
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