इक सुबह इक कली टूटी
और मेरे आंगन मे आ गिरी
रो रही थी बिलख रही थी
मुझको चीख पुकार सुनयी पडी
मै उसके समीप गया
उसको थोडा सहला दिया
फ़िर उससे कारण पुछा
उसने ना कुछ जवाब दिया
फ़िर अचानक वो बोली
कि मै इक अजन्मी बच्ची हूं
मेरी मां ने
कोख मे मेरा कत्ल किया
इक कली को
फ़ूल बनने से पहले मसल दिया
फ़िर उसने वो प्रश्न किये
आंखो मे आंसु मेरे ला दिये
और फ़िर वो अपनी मां से कुछ सवाल करती है उन,
सवालो ने मुझको अन्दर तक झकझोर कर रख दिया
वो कहती है
कि ए मां मां ए मां
मेरी क्या गलती थी
जो तुने कोख मे मुझे मिटा दिया
जन्म तो मुझको लेने देती
क्यो पहले ही मेरा बलिदान किया
ए मां
मैने तो तुझको इतना चाहा था
कि मै ना खेली कोख मे तेरी
शांत सब्र से बैठी रहती
कहीं तुझको दर्द ना हो
तेरे दर्द की खातिर सिमटी रहती
पर क्या अहसास तेरे सब मर गये थे
क्या तुझको ना दर्द हुआ
जब तुने मारा मुझको
क्या तेरे सीने मे ना तीर गडा
ए मां
मै भी तो झांसी की रानी बन सकती थी
इन्दिरा गांधी कल्पना चावला हो सकती थी
क्यो तुने मुझ पर ना विश्वास किया
नाम को तेरे रोशन करती
क्यो पहले ही गला तुने मेरा घोट दिया
ए मां
मै भी इस दुनिया मै आना चाहती थी
तेरी गोद मे सर रखकर सोना चाहती थी
तेरे स्नेह के सागर से
कतरा दो कतरा चाहती थी
पर क्यो तुने कोख को अपनी श्मशान किया
क्यों तुने मुझको कोख मे अपनी जला दिया
खैर कोई बात नही मां
तेरी भी कोई मजबूरी होगी
जिसने जननी को हैवान किया
अब तू जीना सुख चैन से
मैने अपना कत्ल तुझे माफ़ किया
और मेरे आंगन मे आ गिरी
रो रही थी बिलख रही थी
मुझको चीख पुकार सुनयी पडी
मै उसके समीप गया
उसको थोडा सहला दिया
फ़िर उससे कारण पुछा
उसने ना कुछ जवाब दिया
फ़िर अचानक वो बोली
कि मै इक अजन्मी बच्ची हूं
मेरी मां ने
कोख मे मेरा कत्ल किया
इक कली को
फ़ूल बनने से पहले मसल दिया
फ़िर उसने वो प्रश्न किये
आंखो मे आंसु मेरे ला दिये
और फ़िर वो अपनी मां से कुछ सवाल करती है उन,
सवालो ने मुझको अन्दर तक झकझोर कर रख दिया
वो कहती है
कि ए मां मां ए मां
मेरी क्या गलती थी
जो तुने कोख मे मुझे मिटा दिया
जन्म तो मुझको लेने देती
क्यो पहले ही मेरा बलिदान किया
ए मां
मैने तो तुझको इतना चाहा था
कि मै ना खेली कोख मे तेरी
शांत सब्र से बैठी रहती
कहीं तुझको दर्द ना हो
तेरे दर्द की खातिर सिमटी रहती
पर क्या अहसास तेरे सब मर गये थे
क्या तुझको ना दर्द हुआ
जब तुने मारा मुझको
क्या तेरे सीने मे ना तीर गडा
ए मां
मै भी तो झांसी की रानी बन सकती थी
इन्दिरा गांधी कल्पना चावला हो सकती थी
क्यो तुने मुझ पर ना विश्वास किया
नाम को तेरे रोशन करती
क्यो पहले ही गला तुने मेरा घोट दिया
ए मां
मै भी इस दुनिया मै आना चाहती थी
तेरी गोद मे सर रखकर सोना चाहती थी
तेरे स्नेह के सागर से
कतरा दो कतरा चाहती थी
पर क्यो तुने कोख को अपनी श्मशान किया
क्यों तुने मुझको कोख मे अपनी जला दिया
खैर कोई बात नही मां
तेरी भी कोई मजबूरी होगी
जिसने जननी को हैवान किया
अब तू जीना सुख चैन से
मैने अपना कत्ल तुझे माफ़ किया
(साभार - गौरव जैन, संभलपुर)
मुजफ्फरपुर
मोबाइल - 9431238161
2 comments:
nice thinking
हम्म ! क्या कहा जाए ? क्या वह नहीं जानती कि जननी की तरह उसकी कोख भी उसके विवाह के समय से उसकी अपनी नहीं रही ? भारतीय समाज का कानून तो यही है । यदि जननी में हिम्मत होती तो उसे ललकारती। नहीं थी तो जो कहा गया कर दिया । या यह भी हो सकता है कि उसका इतना ब्रेन वाश हो चुका था कि वह स्वयं स्त्री होकर स्त्री की शत्रु बन गई । जो भी हो ऐसे घर में जन्म से मरना ही सुखद है ।
घुघूती बासूती
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