आख़िर है तो इंसान ही
अहिंसा के पथ से भटक गए है वो लोग
इंसानी चीख से वे भी दहल जायेंगे
बकरे की अमा कब तक मनाएगी खैर
जब पकडे जायेंगे तब याद आ जायेगी नानी
चिथड़े चिथड़े होकर उडी थी उनकी देह
आए थे जानी अनजानी जगह से
न जाने संजोये होंगे क्या-क्या सपने
बस एक धडाम और हो गए सब चकनाचूर
इश्वर नही ले पाए तेरा नाम
कैसे कैसे नजारें है तेरी इस दुनिया के
पता नहीं कैसी कैसी दे राखी छूट
प्रकृति के साथ-साथ तेरी अनमोल कृति
मानव भी कितना बदल गया है
जानवरों सा दिमाग मानवों को भी देकर
बना दिया है कितना बेरहम
इसा ने कहा ,इन्हे माफ़ कर दे
पता नहीं वे क्या कर रहे है
कवि कहता है
सब के ऊपर मानव ही सत्य है
मानव ही देव मानव ही सेव
मानव बिन नहीं केव
फ़िर भी कैसा-कैसा बन गया है इंसान
पशु से भी बदतर हो गया है इंसान
नहीं हूँ हैरान मुझे भरोसा है
एक दिन सब बदल गया जाएगा
शान्ति से रहना चाहेगा
प्रेम की गंगा में बह जायेगा
मेरे भरोसे की लाज रखना हे भगवन
सबको आख़िर आना है तेरे पास।
किशोर कुमार जैन
2 comments:
अच्छी कविता है… जरूर मानव अपने इतिहास की ओर ही बढ़ रहा है…।
achi kavita hai
aapki kavita 'kavi manch' per post ki gai hai
dekhen
kavimanch.blogspot.com
Post a Comment
हम आपकी टिप्पणियों का स्वागत करते है.