व्यक्तित्व विकाश के सम्बन्ध में मेरे बिचारों पर पता नहीं शम्भू जी क्या टिपण्णी करने वालें हैं? पर इंतज़ार के अलावा मैं और कर भी क्या सकता हूँ।
जब बातें व्यक्ति विकाश और व्यक्तित्व विकाश की चल रही है तो जाहिर है, इस क्रम में कुछ समय बाद 'समाज सुधार' पर भी चर्चा तो होनी ही है। इस आने वाले चर्चा सूत्र हेतु तोरण द्वार के रूप में मैं पढ़ी हुई एक घटना का जिक्र आप सुधि पाठको के समक्ष करना चाहूंगा।
घटना यूँ बयां की जा सकती है....
शादी कर एक बहु रानी अपने ससुराल आयी। कुछ दिनों बाद ससुराल में उसकी एक मात्र ननद की शादी का शुभ अवसर आया। एक अच्छी सास की तरह उक्त बहु की सास भी सारे कार्यो में बहु को अपने साथ रख रही थी , ताकि बहु उस परिवार (कबीले) की परम्पराएँ/ रिती -रिवाज़ अच्छी तरह सीख ले। बहु भी मन से सरे रिती- रीवाजों को अच्छे से देख रही थी।
शादी के घर में एक काली बिल्ली पाली हुई थी। सासू जी ने सोचा की घर में शुभ कार्य हो रहा है, और यह बिल्ली आते जातों का रास्ता काट कर अपशकुन न करें, और उन्होंने नाई से कह कर उस बिल्ली को एक खंभे से बंधवा दिया। शादी सकुशल हो गयी। बिल्ली को भी मुक्त कर दिया गया।
समय चक्र चलता रहा। उसी घर में आज एक और शादी हो रही है। शादी हो रही है उस बहु की बड़ी बेटी की। सासुजी दीवार पर लटकी अपनी तस्वीर से आशीर्वाद दे रही है। बरात आने का वक्त होने लगा है। अचानक लड़की की माँ (बहू) को ध्यान आता है और नाई को तुंरत बुलवाया जाता है और उसे कहा जाता है की जल्द से जल्द जा कर कहीं से एक काली बिल्ली ले कर आए और उसे खम्भे से बाँध दे। परिवार की रीतियों का पालन होना जरूरी है। नाई काली बिल्ली ले कर आता है और उस काली बिल्ली को खंभे से बाँधा जाता है और तब शादी की बाकी रस्में निभायी जाती है।
ऐसी न जाने कितनी काली बिल्लिया आज भी हमारे आंगनों में ऐसी रीतियों के नाम से बाँधी जा रहीं है... है न ?
ओमप्रकाश
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