जो समाज अपने साहित्यकारों को अपेक्षित सम्मान नहीं दे सकता, उसके पराभव को भला कौन रोक सकता है। पारिवारिक आयोजनों में सोने के बाजोट पर अनगिनत पकवान परोसने और दिखावा करने वालों से कोई अपेक्षा नहीं करता, पर जागरूक लोगों का रूखापन तो आंखों में आंसू लाता ही है। प्रकाश जी, जब इसी तरह का आक्रोश इस समाज के प्रति मेरा होता है तो आप मुझे रोक देते हैं। प्रकाश जी, सच पुछें तो मेरा हृदय रोता है इस प्रवासी मारवाड़ी समाज को देख कर मन कई बार विचलित हो उठता है। क्या हम आने वाली पीढ़ी को यही सब दे कर जायेंगें? समाज ने सीताराम सेकसरिया, भवरमल सिंधी, सेठ गोविन्द दास, महावीर प्रसाद पोद्दार, ज्योति प्रसाद अगरवाला, डॉ.गुलाव चन्द कटोरिया, श्री हरीश भादानी, श्री सीताराम महर्षि, अम्बू शर्मा, गुरुवर कल्याणमल जी लोढ़ा, श्री कमल किशोर गोयनका, श्रीमती इन्दु जोशी, प्रतिभा अग्रवाल, कुसुम खेमानी, प्रतिभा खेतान, श्री दाउलाल कोठारी, श्री देवीप्रसाद बागड़ोदिया, श्री कन्हैयालाल सेठिया, न जाने अनगिनत नाम मेरे जेहन में गूंज रहें हैं जिनका नाम लिखने के लिए एक लंबी फेहरिस्त तैयार करनी होगी। पर इस समाज को पता नहीं किसका शाप लग गया है। जो समाज एक पुस्तक नहीं खरीद सकता पर लाखों रुपये शादी-समारोह में पनी में बहा देता हो, कोई विरोध करने वाल तक नहीं, समाज के युवकों को कोई दिशा देने वाला तक नहीं , जो नेता बन जाते हैं वे अपना नाम रोशन करने और खुद को महान बनाने के चक्कर में समाज को कितनी क्षति पंहुचाने में लगे हैं यह बात हम सोच भी नहीं सकते । हो सकता है कल मेरी भी मौत हो जाय। इसी दर्द को मन में छुपाये हुए 20 साल से इस प्रयास को बल देता हूँ कि कम से कम 20-25 युवकों में साहित्य के प्रति रुचि पैदा कर सकूँ। आपके जैसे कुछ पत्रकारों को सामने ला सकूँ। शायद समाज की थोड़ी सी तस्वीर को बदल सकूँ। आपका ही शम्भु चौधरी कोलकाता।
शम्भूजी आपकी प्रतिक्रिया सचमुच आंख खोलने लायक है. सामजिक कुरूतियों के ख़िलाफ़ आप लंबे अरसे से आन्दोलन करते आ रहे हैं. सेठिआजी प्रकरण पर मेरे विचारों से आप सहमत हैं. यह एक पक्ष है. मुझे खुशी इस बात की है कि आप आज भी अपने सामाजिक सरोकारों को खूब समझते हैं. सेठिया जी के अन्तिम दर्शन कराने के लिए आपका वरिष्ठ कवि हरीश भादानी जी को लेकर शमशान घाट पहुंचना इसका उदाहरण है. आपने महाकवि सेठिया का अन्तिम साक्षात्कार समाज विकास में प्रकाशित किया और जिस सम्मान के साथ आपने उन्हें उस अंक में स्थान दिया, वह बड़ी बात है. समाज का ठेका लेकर बैठे लोगों को फुर्सत है तो केवल बयान बहादुरी करने तक. यह फर्जीवाडा आपको दुखी करता रहा है, और मुझे भी. जहाँ तक मेरे द्वारा आपको ऎसी कुरीतियों के विरोध से रोकने की बात है बंधू, वह बात समझ में नही आई. आपको रोकना सम्भव है क्या भला? बीस साल पहले जब शत्रुघ्न सिन्हा के ख़िलाफ़ आपका आन्दोलन नही रोका जा सका, तो अब कोई कैसे रोक सकता है? कुरीतियों के ख़िलाफ़ हमारा अभियान चलते रहना चाहिए.
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जो समाज अपने साहित्यकारों को अपेक्षित सम्मान नहीं दे सकता, उसके पराभव को भला कौन रोक सकता है। पारिवारिक आयोजनों में सोने के बाजोट पर अनगिनत पकवान परोसने और दिखावा करने वालों से कोई अपेक्षा नहीं करता, पर जागरूक लोगों का रूखापन तो आंखों में आंसू लाता ही है।
प्रकाश जी,
जब इसी तरह का आक्रोश इस समाज के प्रति मेरा होता है तो आप मुझे रोक देते हैं। प्रकाश जी, सच पुछें तो मेरा हृदय रोता है इस प्रवासी मारवाड़ी समाज को देख कर मन कई बार विचलित हो उठता है। क्या हम आने वाली पीढ़ी को यही सब दे कर जायेंगें? समाज ने सीताराम सेकसरिया, भवरमल सिंधी, सेठ गोविन्द दास, महावीर प्रसाद पोद्दार, ज्योति प्रसाद अगरवाला, डॉ.गुलाव चन्द कटोरिया, श्री हरीश भादानी, श्री सीताराम महर्षि, अम्बू शर्मा, गुरुवर कल्याणमल जी लोढ़ा, श्री कमल किशोर गोयनका, श्रीमती इन्दु जोशी, प्रतिभा अग्रवाल, कुसुम खेमानी, प्रतिभा खेतान, श्री दाउलाल कोठारी, श्री देवीप्रसाद बागड़ोदिया, श्री कन्हैयालाल सेठिया, न जाने अनगिनत नाम मेरे जेहन में गूंज रहें हैं जिनका नाम लिखने के लिए एक लंबी फेहरिस्त तैयार करनी होगी। पर इस समाज को पता नहीं किसका शाप लग गया है। जो समाज एक पुस्तक नहीं खरीद सकता पर लाखों रुपये शादी-समारोह में पनी में बहा देता हो, कोई विरोध करने वाल तक नहीं, समाज के युवकों को कोई दिशा देने वाला तक नहीं , जो नेता बन जाते हैं वे अपना नाम रोशन करने और खुद को महान बनाने के चक्कर में समाज को कितनी क्षति पंहुचाने में लगे हैं यह बात हम सोच भी नहीं सकते । हो सकता है कल मेरी भी मौत हो जाय। इसी दर्द को मन में छुपाये हुए 20 साल से इस प्रयास को बल देता हूँ कि कम से कम 20-25 युवकों में साहित्य के प्रति रुचि पैदा कर सकूँ। आपके जैसे कुछ पत्रकारों को सामने ला सकूँ। शायद समाज की थोड़ी सी तस्वीर को बदल सकूँ।
आपका ही
शम्भु चौधरी
कोलकाता।
शम्भूजी
आपकी प्रतिक्रिया सचमुच आंख खोलने लायक है. सामजिक कुरूतियों के ख़िलाफ़ आप लंबे अरसे से आन्दोलन करते आ रहे हैं. सेठिआजी प्रकरण पर मेरे विचारों से आप सहमत हैं. यह एक पक्ष है. मुझे खुशी इस बात की है कि आप आज भी अपने सामाजिक सरोकारों को खूब समझते हैं. सेठिया जी के अन्तिम दर्शन कराने के लिए आपका वरिष्ठ कवि हरीश भादानी जी को लेकर शमशान घाट पहुंचना इसका उदाहरण है. आपने महाकवि सेठिया का अन्तिम साक्षात्कार समाज विकास में प्रकाशित किया और जिस सम्मान के साथ आपने उन्हें उस अंक में स्थान दिया, वह बड़ी बात है. समाज का ठेका लेकर बैठे लोगों को फुर्सत है तो केवल बयान बहादुरी करने तक. यह फर्जीवाडा आपको दुखी करता रहा है, और मुझे भी.
जहाँ तक मेरे द्वारा आपको ऎसी कुरीतियों के विरोध से रोकने की बात है बंधू, वह बात समझ में नही आई. आपको रोकना सम्भव है क्या भला? बीस साल पहले जब शत्रुघ्न सिन्हा के ख़िलाफ़ आपका आन्दोलन नही रोका जा सका, तो अब कोई कैसे रोक सकता है? कुरीतियों के ख़िलाफ़ हमारा अभियान चलते रहना चाहिए.
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